मनुष्य
आज के इस युग में मनुष्य सा ना मूर्ख है स्वयं की ना सेवा करके दूसरों के दूत है यह चाटुकारिता में फसके बनते यह विभूत है मनुष्य बुद्धिजीवी मानवजाति का रखवाला है परन्तु कर्मो से प्रतीत करता सृष्टि खत्म करने वाला है आज के इस युग में बुराई ही प्रचंड है समस्त ही मनुष्य दिखते बुराई से उत्पन्न है पाप ही सुगम है पुण्य तो दुर्गम है बुद्धि लोगों की तो हो चुकी भस्म है नारी को यह पूजने वाले बनते बलात्कारी है पति को परमेश्वर मानने वालियों की अत्याचारी जारी है ना दानवीरता ना कर्मवीरता है ईमानदारी की तो मनुष्य रेड पीटता है कहने को ना शब्द है मन भी मेरा स्तबध है देखकर अच्छाई को बिना अवलंब के विनय का यह रक्तपात देख बढ़ता रक्तचाप देख लहू की धाराएं क्यों ईश्वर मौन हमारा है डर का साम्राज्य पैदा कौन करता जा रहा है क्या यह कली की उत्पत्ति है या इंसानियत की परीक्षा है इस क्रूरता को देख कर बस अब तो कल्कि की प्रतीक्षा है कल्कि की प्रतीक्षा है। - ईशान चतुर्वेदी